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कविता

विश्वग्राम

भारतेन्दु मिश्रा


विश्वग्राम के सीवानो पर, फसल पक चुकी है भैया
सब कुछ मिलता इंटरनेट पर, घर कपड़ा रोटी सैंया।

नेताओं की एक राय है, यह दुनिया बाजार बने
हँसिया सुई हथौडा छोड़ो, मानव-बम हथियार बने
ऋण लेकर कंप्यूटर सीखो, नया जमाना है भैया।

हत्याओं के सौदागर हैं, अस्मत के व्यापारी हैं
लूट डकैती और दलाली के सब कारोबारी हैं
शिक्षा-न्याय-चिकित्सा में, अब बडा कमीशन है भैया।


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